रात के अँधेरे में एक आहट सुनाई देती
एक आहट जो मुझे डरा देती है
अँधेरे से डर तो हमेशा ही लगता था
अँधेरे में जाने से दिल डरता था
पर अब ये डर थोडा बढ़ गया है
डर की वजह भी बढ़ गयी है
मैं सुबह का इंतज़ार करती हूँ
रात भर सोने से डरती हूँ
सवेरा तो आ जाता है
पर सुबह नहीं आती है
अँधेरा चला जाता है
पर वापिस भी आता है
कब आयेगा वो दिन
जब मुझे रात की चिंता न होगी?
कब आयेगा वो सवेरा
जब रात को वो आहट न होगी?
जब किया मैंने ये सवाल
सबने कहा यही रहेगा हाल
तुम्हे ये सब सेहना ही होगा
ये कड़वा घूँट पीना ही होगा
नहीं बदलेगा ये कभी
रहेगा सबकुछ वही का वही
ये नहीं है सिर्फ मेरा सवाल
फिर क्यों नहीं बदलता हाल?
हैं हम सभी इसके शिकार
फिर क्यूँ मान जाते हैं सब हार?
डर के जीने से आखिर किसका हुआ भला ?
क्यूँ तू खुद के लिए अकेले न चला?
तू अकेले कदम तो बढ़ा
फिर देख कैसे पूरा देश पीछे होगा खड़ा
हमें ये अँधेरा मिटाना ही होगा
एक नया सवेरा लाना ही होगा

Very beautiful, strong and lovely.
Superb lines:
“सवेरा तो आ जाता है
पर सुबह नहीं आती है”
Touched!
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Amazing thoughts ya 🙂
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beautiful!!
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Wah wah wah!!!
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wah wah wah!!!!!
Bahut kuch keh diya!
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its just amazing and touching 🙂
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This comment has been removed by the author.
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Good. Arpita.. I dont have any idea about your state of mind while writing this piece of poetry. Does these lines refelects lonely young gitl living alone in a male dominated society. If it is true than i muat say you should make some changes in the concluding lines and it would be perfect…… I am sorry if i assumed it wrongly
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